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अतिवादं न प्रवदेव वाद्येद् योऽनाहतः प्रतहन्यान्न घातयेत्।
हन्तुं च यो नेच्छति पापकं वै तस्मै देखाः समुहयन्त्यागताय।।
भावार्थ - जो स्वयं किसी के प्रति बुरी बात न स्वयं कहता न दूसरे को कहने के लिये प्रेरित करता, बिना मार खाये किसी को नहीं मारता और न मरवाता है, अपराधी को भी क्षमा करता है, ऐसे मनुष्य के आगमन की तो देवता भी राह देखते हैं।
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