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व्यक्ति ने अपना जो कर्तव्य स्वीकार किया है , या जो कर्तव्य उस पर न्यस्त हुआ है| उसका उसे अचुक रुप से निर्लिप्त होकर पालन करना पदेगा | और जो जितनी ही पूर्णता एवं निर्लिप्तता से उसका पालन कर सकेगा ,वह उतना ही शीघ्र इस बन्धन से मुक्त होगा |
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