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सरनागत कहू जे तजही निज अनहित अनुमानी |
ते नर पावर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि ||
भावार्थ - जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते है, वे पामर (क्षुद्र) है, पापमय है, उन्हें देखने में भी हानि है (पाप लगता है) |
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