मंगलवार, 11 मई 2010

रामचरित मानस # 7

############ ॐ ###############

सरनागत कहू जे तजही निज अनहित अनुमानी |
ते नर पावर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि ||


भावार्थ - जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते है, वे पामर (क्षुद्र) है, पापमय है, उन्हें देखने में भी हानि है (पाप लगता है) |

############ ॐ ###############

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