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सचिव बैद गुर तीनी जौँ प्रिय बोलहिं भय आस |
राज धर्म तन तीनी कर होई बेगिहीं नास ||
भावार्थ - मंत्री, विद्या और गुरु- ये तीन यदि अप्रसन्नता के भय या लाभ कि आशा से हित कि बात न कहकर प्रिय बोलते है तो क्रमशः राज्य, शरीर और धर्म - इन तीनो का शीघ्र ही नाश हो जाता है |
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