मंगलवार, 17 अगस्त 2010

रामचरित मानस # 10

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मोरे प्रोढ तनय सम ज्ञानी | बालक सूत सम दास अमानी ||
जानही मोर बल निज बल ताहि | दुहु कह काम क्रोध रिपु आही ||


भावार्थ - सयाना हो जाने पर पुत्र पर माता प्रेम तो करती है, परन्तु पिछली बात नहीं कहती | (अर्थात माँतृपरायण शिशु की तरह फिर उसको बचाने की चिंता नहीं करती, क्योंकि वे माता पर निर्भर न कर अपनी रक्षा आप करने लगता है ) ज्ञानी मेरे प्रोढ (सयाने) पुत्र के समान है और अपने बल का मान न करने वाला सेवक मेरे शिशु पुत्र के समान है |

############ ॐ ###############

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