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अर्थकामेष्वसक्तनां धर्मज्ञानं विधीयते।
धर्म जिज्ञासमानाना प्रमाणं परमं श्रुतिः।।
भावार्थ-धर्म
का उपदेश और प्रचार का काम केवल उन्हीं लोगों को करना चाहिए जो काम और अर्थ
के विषय में आसक्त नहीं है। जिनकी काम और अर्थ में आसक्ति है उनकी धर्म
में अधिक रुचि नहीं रहती। इसके अलावा उनको धर्म के उपदेश स्वयं ही समझ में
नहीं आता इसलिये उनके वचन प्रमाणिक नहीं होते।
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