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धर्मार्थोश्यः परित्यज्य स्यादिन्द्रियवशानगुः।
श्रीप्राणधनदारेभ्यः क्षिप्र स परिहीयते।।
भावार्थ - विदुर के कथनानुसार जो मनुष्य धर्म और अर्थ
इंद्रियों के वश में हो जाता है वह शीघ्र ही अपने ऐश्वर्य, प्राण, धन,
स्त्री को अपने हाथ से गंवा बैठता है।
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