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अर्थानामीश्वरो यः स्यादिन्द्रियाणमीनश्वरः।
इन्द्रियाणामनैश्वर्यर्दिश्वर्याद भ्रश्यते हि सः।।
भावार्थ-अधिक धन का स्वामी होने पर भी, इंद्रियों पर अधिकार करने की बजाय,
उसके वश में हो जाने वाला मनुष्य ऐश्वर्य से भ्रष्ट हो जाता है।
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