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जब ईश्वर के प्रति परिपुर्ण प्रेम हो जायेगा , तब व्यक्ति के लिये किसी
साधना की आवश्यकता ही नही होगी | तब न किसी आचार का प्रयोजन रहेगा, न जप-तप
का, न विधि नियम का , न कठोर अनुशासन का | तब तो भक्त केवल आस्वादन लेकर
रहेगा. भगवान को लेकर आनन्द मनायेगा|
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