सोमवार, 22 जून 2015

भर्तृहरि शतक #2

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क्षणं बालो भूत्वा क्षणमपि युवा कामरसिकः क्षणं वितैहीनः क्षणमपि च संपूर्णविभवः।
जराजीर्णेंगर्नट इव वलीमण्डितततनुर्नरः संसारान्ते विशति यमधानीयवनिकाम्।।

भावार्थ - क्षण भर के लिये बालक, क्षणभर के लिये रसिया, क्षण भर में धनहीन और क्षणभर में संपूर्ण वैभवशाली होकर मनुष्य बुढ़ापे में जीर्णशीर्ण हालत में पहुंचने के बाद यमराज की राजधानी की तरफ प्रस्थित हो जाता है। एक तरह से इस संसार रूपी रंगमंच पर अभिनय करने के लिये मनुष्य आता है।

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