मंगलवार, 18 अगस्त 2015

मनुस्मृति # 3

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कुटशासनकर्तृश्च प्रकृतीनां च दूषकान्।
स्त्रीबालब्राहम्णघ्राश्च हन्यात् द्विट्सेविनस्तथा।

भावार्थ - राज्य के प्रतीक चिन्हों की नकल से अपना स्वार्थ निकालने वालों, प्रजा को भ्रष्ट करने में रत, स्त्रियों, बालकों व विद्वानों की हत्या करने वाले और राज्य के शत्रु से संबंध रखने वालों को अतिशीघ्र मार डालना चाहिये।

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