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स्वराष्ट्रे न्यायवृत् स्याद् भृशदण्डश्च शत्रुषु।
सहृत् स्वजिह्मः स्निगधेषु ब्राह्मणेषु क्षमान्वितः।।
भावार्थ - राजा को चाहिए कि वह प्रजा के शत्रुओं को उग्र दंड दे। प्रजा
के मित्रों से सौहार्दपूर्ण तथा राज्य के विद्वानों से उदारता के साथ ही
क्षमा का व्यवहार करे।
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