############ ॐ ###############
न मित्रकारणाद्राजा विपुलाद्वाधनागमात्।
समुत्सुजोत्साहसिकान्सर्वभुतभयावहान्।।
साहसे वर्तमानं तु यो मर्षयति पार्थिवः।
सः विनाशं व्रजत्याशु विद्वेषं चाधिगच्छति।।
भावार्थ - राज्य प्रमुख को चाहिये कि वह, स्नेह या लालच मिलने पर भी, प्रजा में भय उत्पन्न करने वाले अपराधियों को क्षमा न करे। यदि राज्य प्रमुख दुस्साहस करने वाले व्यक्ति को क्षमा या उसे अनदेखा करता है तो उसका अतिशीघ्र विनाश हो जाता है क्योंकि तब प्रजा में उसके विद्वेष की भावना पैदा होती है।
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न मित्रकारणाद्राजा विपुलाद्वाधनागमात्।
समुत्सुजोत्साहसिकान्सर्वभुतभयावहान्।।
साहसे वर्तमानं तु यो मर्षयति पार्थिवः।
सः विनाशं व्रजत्याशु विद्वेषं चाधिगच्छति।।
भावार्थ - राज्य प्रमुख को चाहिये कि वह, स्नेह या लालच मिलने पर भी, प्रजा में भय उत्पन्न करने वाले अपराधियों को क्षमा न करे। यदि राज्य प्रमुख दुस्साहस करने वाले व्यक्ति को क्षमा या उसे अनदेखा करता है तो उसका अतिशीघ्र विनाश हो जाता है क्योंकि तब प्रजा में उसके विद्वेष की भावना पैदा होती है।
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