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पुत्र की उत्पत्ति और पालन के लिए माता पिता को जो क्लेश सहने पड़ते है उनका बदला १०० वर्षो में भी नहीं चुकाया जा सकता है । पुत्र को चाहिए की वो माता पिता व गुरु का प्रिय करे । इस तीनो संतुष्ट होने पर सब तपस्या पूर्ण हो जाती है , इनकी सेवा ही सबसे बड़ा तप , इनकी आज्ञा का उल्लंघन करके किया कार्य सिद्ध नहीं होता । जिससे इन तीनो को संतोष हो वही पुरुषार्थ है |
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पुत्र की उत्पत्ति और पालन के लिए माता पिता को जो क्लेश सहने पड़ते है उनका बदला १०० वर्षो में भी नहीं चुकाया जा सकता है । पुत्र को चाहिए की वो माता पिता व गुरु का प्रिय करे । इस तीनो संतुष्ट होने पर सब तपस्या पूर्ण हो जाती है , इनकी सेवा ही सबसे बड़ा तप , इनकी आज्ञा का उल्लंघन करके किया कार्य सिद्ध नहीं होता । जिससे इन तीनो को संतोष हो वही पुरुषार्थ है |
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