निरर्थ कलह प्राज्ञो वर्जयन्मूढसेवितम्।
कीर्ति च लभते लोके न चानर्थेन युज्यते।।
भावार्थ-बिना बात के कलह करना मूर्खो का कार्य है। बुद्धिमान पुरुषो को चाहिए कि वह इस बुराई से दूर रहें। बिना बात के विवाद करने से एक तो यश नहीं मिलता दूसरा अनेक बार बेकार के संकटों का सामना करना पड़ता है।
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न च रात्रौ सुखं शेते ससर्प इव वेश्मनि।
यः कोपयति निर्दोषं सदोषोऽभ्यन्तरं जनम्।
भावार्थ-जो स्वयं दोषी होकर भी निर्दोष और आत्मीय व्यक्ति को कुपित करता है वह सांप के निवास करने वाले घर वाले मनुष्य की भांति सुख से सो नहीं सकता।
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