सोमवार, 19 जुलाई 2010

श्री राम क्रष्ण परमहंस # 4

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ईश्वर को हटाकर जो स्वयं का कर्तव्य बोध है, यही विपत्ति का मुल है यदि हम इस बात को सदा स्मरण रख सकते कि सब कुछ वे ही कर रहे है , तब तो और चिन्ता ही नही थी तब तो हम जीवनमुक्त हो जाते लेकिन जो अच्छा है ,उसमे तो हम अपना कर्तव्य देखते है और जो बुरा है उसके लिये यदि कहे कि 'वे करा रहे है' तब तो यह मन के साथ छल करना है
यदि हम पुरी तरह कर्तव्यहीन होते तो शुभ तथा अशुभ किसी भी प्रकार के कर्म के फल के लिये हम उत्त्तरदायी नही होंगे लेकिन जब अपने मे हमे कर्तापन का , भोक्तापन का बोध होता है , तब अच्छे व बुरे दोनो प्रकार के फल भी भोगने पडते है अत: या तो यह सारा दायित्व हम पुरी तरह से अपने ऊपर ले , या फिर सब कुच उनके हाथ मे छोड दे बीच का कोइ रास्ता नही है

यह छल ना करे, यदि हम सम्पूर्ण रुप से उन पर निर्भर ह्प सके तो हमारा विश्वास कभी धोखा नही खायेगा वे ही सब प्रकार के अमंगल से हमारी रक्षा करेंगे
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