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राम बिमुख सम्पति प्रभुताई | जाई रही पाई बिनु पाई ||
सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाही | बरषि गए पुनि तबही सुखाही ||
भावार्थ - रामविमुख पुरुष की सम्पति और प्रभुता रही हुई भी चली जाती है और उसका पाना न पाने के समान है | जिन नदियों के मूल में कोइ जलस्त्रोत नहीं है (अर्थात जिन्हें केवल बरसात का ही आसरा है) वे वर्षा बीत जाने पर फिर तुरंत ही सुख जाती है |
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