मंगलवार, 6 जुलाई 2010

महाभारत

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अहन्यहनि भुतानि गच्छन्ति यममन्दिरम|
शेषा: स्थिरत्वमिच्छन्ति किमाश्चर्यमत: परम ||


भावार्थ - प्रतिदिन मनुष्य म्रत्यु के मुख का ग्रास बन रहा है, परन्तु फिर भी उसे होश नही है| वह सोचता है, जिसे मरना है वही मरेगा , मै तो ठीक बना रहुंगा | बद्ध जीव को बन्धन के प्रति कोई होश नही रहता | वह कसकर बन्धा हुआ है, इसका ख्याल नही| इसिलिये मनुष्य योजनाये बनाता है, कल्पनाये करता है- ' यह करुन्गा , वह करुन्गा' , लेकिन यह नही सोचता कि आज ही बुलावा आ जये तो सब छोड्कर चले जाना होगा |

############ ॐ ###############

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