रविवार, 22 मई 2011

भगवान महावीर

जीवन भ्रान्ति नही है, संसार माया नही है , यह तो आत्मा एवं सर्वात्मा
की अभिव्यक्ति का सर्वोत्तम माध्यम है | यह अभिव्यक्ति उत्तरोत्तर जितनी
सम्पुर्ण व समग्र होती जाती है, उतना ही इसका सोन्दर्य बढता जाता है
| आत्मा एवं सर्वात्मा की अभिव्यक्ति की सम्पुर्णता मे ही जीवन एवं संसार
के सोन्दर्य की सम्पुर्णता है | इसी मे क्षण- क्षण प्रसनता व आनंद की
अनुभुति होती है | इस अनुठी अभिव्यक्ति का माध्यम है सच्चिन्तन एवं
सत्कर्म | इस और हम जितना भी बढते है , प्रसन्नता और आनन्द भी उतना ही
बढता है | इसमे पांच बाधाये है-

  1. विवेक का अभाव , यानि कि मिथ्यात्व ,

  2. वैराग्य का अभाव ,जिसकी वजह से राग द्वेष पनपते है ,

  3. प्रमाद यानि सच्चिंतन एवं सत्कर्मो को न करने की प्रवर्ति

  4. कषाय, जो लोभ , क्रोध , मान, माया का रुप लेकर आते है

  5. मानसिक , वाचिक , कायिक क्रियाओ मे विक्रतियो व विकारो का योग



इन सभी बाधाओ को दूर करने के उपाय है -

  1. सम्यक दर्शन - अर्थात आध्यात्मिक सिद्धांतो एवं प्रयोगो को सम्पुर्ण
    अन्तर्मन से स्वीकारना

  2. सम्यक ग्यान - इसके तत्व को गहनता से आत्मसात कर लेना

  3. सम्यक चरित्र - इसके अन्तर्गत अपने को आध्यात्मिक सिद्धांतो एवं प्रयोगो मे
    इस कदर ढालना होता है कि समुचा जीवन ही अध्यात्म विग्यान की
    परिभाषा बन जाये , ऐसा होने पर केवल ग्यान होता है, जिसमे सत्ता एवं
    सत्य की सम्पूर्ण अनुभुति होती है , जबकि सामान्य अवस्थाओ मे इसके
    सापेक्षिक अनुभव ही हो पाते है.

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