सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

रामचरित मानस # 13

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तब लगि ह्रदय बसत खल नाना | लोभ मोह मच्छर मद माना ||
जब लगि उर न बसत रघुनाथा | धरे चाप सायक कटी भाथा ||

भावार्थ -  लोभ, मोह, मत्सर (दह), मद और मान आदि अनेको दुष्ट तभी तक ह्रदय में बसते है, जब तक की धनुष-बाण और कमर में तरकस धारण किये हुए श्रीरघुनाथजी ह्रदय में नहीं बसते (उनके आदर्श मूल्यों का अपने जीवन में अनुसरण नही होता) |




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