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तब लगि ह्रदय बसत खल नाना | लोभ मोह मच्छर मद माना ||
जब लगि उर न बसत रघुनाथा | धरे चाप सायक कटी भाथा ||
भावार्थ - लोभ,
मोह, मत्सर (दह), मद और मान आदि अनेको दुष्ट तभी तक ह्रदय में बसते है, जब
तक की धनुष-बाण और कमर में तरकस धारण किये हुए श्रीरघुनाथजी ह्रदय में
नहीं बसते (उनके आदर्श मूल्यों का अपने जीवन में अनुसरण नही होता) |
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