मंगलवार, 31 जनवरी 2017

आदिगुरु शंकराचार्य

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यदिदं सकलं विश्वं नानारूपम् प्रतितमज्ञानात्  ।
तत्सर्वं ब्रह्मवेम प्रत्यस्ताशेषभावनादोषम ॥
निरस्तमायाकृत सर्वभेदं नित्यं सुखं निष्कलं प्रमेयम्    ।
अरूपमव्यक्तं  नाखयमव्ययम  ज्योतिः स्वयं किच्चिदिदम् चकास्ति || 

भावार्थ - यह संपूर्ण विश्व जो अज्ञान से नानारूप व् नाम वाला प्रतीत होता है , दरअसल वह समस्त भावनाओ के दोषो से रहित ब्रह्म ही है।
वह समस्त काल्पनिक भेदो से रहित है, नित्य सुखस्वरूप , कलारहित और प्रमाणादि का अविषय है । वह कोई अरूप , अव्यक्त , अनाम , अक्षय तेज है , जो स्वयं ही प्रकाशित हो रहा है ।

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