बुधवार, 1 अप्रैल 2020

शेख बाबा फरीद जी

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फरीदा मै जानिया दुखु मुझ कू, दुखु सवाइये जगि|
ऊंचे चडि कै देखिया , तां घरि घरि एहा अगि||

भावार्थ -  है फरीद ! मै पहले मन की खाईयो से पैदा हुये दुख से घबराकर यह समझा कि दुख सिर्फ मुझे ही है | सिर्फ मै ही दुखी हूं, पर असल मे यह दुख तो सारे ही जगत मे व्याप्त हो रहा है | जब मैने अपने दुख से उंचा उठकर ध्यान दिया तो मैने देखा कि प्रत्येक घर मे यही आग जल रही है अर्थात प्रत्येक जीव दुखी है|
 
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